संदेश

जुलाई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारतेन्दु युग किसे कहते हैं।। भारतेंदु युग की विशेषताएं

भारतेन्दु युग - इस पोस्ट में हम भारतेन्दु युग,द्विवेदी युग और छायावाद का अध्ययन करेंगे। और साथ ही इनकी विशेषताएँ, रचनाकार एवं उनकी रचनाओं का अध्ययन करेंगे। भारतेन्दु युग की समय सीमा -  भारतेन्दु युग का रचनाकाल - 1850 ई से 1900 ई तक माना जाता है। क्योंकि भारतेन्दु जी का रचनाकाल 1850 ई से 1885 ई तक रहा है।महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका का सम्पादन 1903 में सम्भाला था और इस पत्रिका का प्रकाशन 1900 ई से शुरू हुआ था अतः 1850 से 1900 ई तक के समय को ही भारतेन्दु युग कहना उचित है। भारतेन्दु युग का नाम भारतेन्दु हरीश्चन्द्र के नाम पर रखा गया है। भारतेन्दु हरीश्चन्द्र हिंदी नवजागरण के अग्रदूत के नाम से प्रसिद्ध हैं। भारतेन्दु जी को गद्य का जनक कहा जाता है। भारतेन्दु हरीश्चन्द्र के पिता गोपाल चन्द्र 'गिरिधर दास' अपने समय के प्रसिद्ध कवि थे। इस युग में खड़ी बोली और बृजभाषा अत्यधिक प्रसिद्ध रही। भारतेन्दु मंडल- इस युग में भारतेन्दु हरीश्चन्द्र को केंद्र में रखते हुए अनेक साहित्यकारों का एक मंडल बना जिसका नाम भारतेन्दु मंडल रखा गया। इस मंडल के रचनाकारों ने भारतेन्दु जी का अनुस...

आधुनिक काल : गद्य साहित्य , उद्भव और विकास

  आधुनिक काल (1850 ई से अब तक) - भारतीय इतिहास का आधुनिक काल 19वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है। आधुनिक काल का प्रारंभ भारतेन्दु युग से होता है। आधुनिक काल की समय सीमा -  आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक काल की समय सीमा 1843 ई से 1923 ई तक मानी है। आधुनिक काल का नामकरण -  आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक काल को ' गद्यकाल' कहा है क्योंकि आधुनिक काल में ही गद्य साहित्य और गद्य की विभिन्न विधाओं का विकास हुआ। मिश्रबंधु - वर्तमान काल डाॅ रामकुमार वर्मा - आधुनिक काल गणपति चन्द्र गुप्त - आधुनिक काल हिंदी गद्य का उद्भव और विकास - हिंदी गद्य का विकास आधुनिक काल में हुआ पर इस काल से पहले भी गद्य रचनाएँ लिखीं गईं थीं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार बल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने ' श्रंगार रस मंडल ' की रचना बृजभाषा में की। चौरासी वैष्णव की वार्ता (17वीं सदी )और  दो सौ वावन वैष्णव की वार्ता इन दोनों रचनाओं के रचनाकार गोकुलनाथ है। नाभादास ने ' अष्टयाम' की रचना बृजभाषा में की । गद्य लेखन का प्रचार- प्रसार न होने के कारण बृजभाषा में जो गद्य लिखा गया उसका विकास नहीं हो सका...

रीतिकाल , रीतिकाल का वर्गीकरण

  रीतिकाल -  आदिकाल और भक्ति काल के बाद के काल को रीतिकाल कहा जाता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस काल को रीतिकाल कहा है। मिश्रबंधुओं ने अलंकृत काल कहा है। विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इस काल को श्रंगार काल कहा है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार रीतिकाल के उदय का कारण जनता की रुचि नहीं थी बल्कि आश्रयदाताओं की रुचि थी। कवियों ने जनता की रुचियों को अनदेखा कर दिया था और सामंतों और रईसों की अभिरुचियों को कविता का केंद्र बनाया। कविता आम आदमी के दुःख और हर्ष से जुड़ने के बजाय दरबारों के वैभव और विलास से जुड़ गई। रीतिकाल में रीति शब्द का प्रयोग काव्यांग निरूपण के रूप में हुआ है अर्थात ऐसे ग्रंथ जिनमें काव्यांगों के लक्षण व उदाहरण हों उसे रीति ग्रंथ कहा जाता है। रीतिकालीन कवियों को तीन भागों में बांटा गया है - रीतिबद्ध रीतिसिद्ध रीतिमुक्त रीतिबद्ध - रीतिबद्ध कवि रीति परम्परा के अनुसार काव्य रचना करते थे। रीति परम्परा का अनुसरण करके इन्होंने लक्षण ग्रंथों की रचना की। रीतिबद्ध कवियों ने काव्यांग निरूपण करते हुए उदाहरण के रूप में श्रंगारिक रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। केशवदास, चिंतामणि, मति...