रीतिकाल , रीतिकाल का वर्गीकरण
रीतिकाल -
आदिकाल और भक्ति काल के बाद के काल को रीतिकाल कहा जाता है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस काल को रीतिकाल कहा है।
मिश्रबंधुओं ने अलंकृत काल कहा है।
विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इस काल को श्रंगार काल कहा है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार रीतिकाल के उदय का कारण जनता की रुचि नहीं थी बल्कि आश्रयदाताओं की रुचि थी। कवियों ने जनता की रुचियों को अनदेखा कर दिया था और सामंतों और रईसों की अभिरुचियों को कविता का केंद्र बनाया।
कविता आम आदमी के दुःख और हर्ष से जुड़ने के बजाय दरबारों के वैभव और विलास से जुड़ गई।
रीतिकाल में रीति शब्द का प्रयोग काव्यांग निरूपण के रूप में हुआ है अर्थात ऐसे ग्रंथ जिनमें काव्यांगों के लक्षण व उदाहरण हों उसे रीति ग्रंथ कहा जाता है।
रीतिकालीन कवियों को तीन भागों में बांटा गया है -
- रीतिबद्ध
- रीतिसिद्ध
- रीतिमुक्त
रीतिबद्ध - रीतिबद्ध कवि रीति परम्परा के अनुसार काव्य रचना करते थे। रीति परम्परा का अनुसरण करके इन्होंने लक्षण ग्रंथों की रचना की।
रीतिबद्ध कवियों ने काव्यांग निरूपण करते हुए उदाहरण के रूप में श्रंगारिक रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।
केशवदास, चिंतामणि, मतिराम, सेनापति, देव, पद्माकर आदि।
रीतिसिद्ध - रीतिसिद्ध कवि रीति परम्परा का ज्ञान रखते थे पर वह रीति परम्परा के अनुसार काव्य रचना करने के लिए बाध्य नहीं थे। इन्होंने रीति ग्रंथ की रचना नहीं की परंतु रीति के अनुसार उत्कृष्ट काव्य रचना की।
बिहारी, रसनिधि आदि।
रीति मुक्त - रीतिमुक्त कवि रीति परम्परा के अनुसार काव्य रचना नहीं करते थे। ये कवि स्वतंत्र रूप से काव्य रचना करते थे। इन्होंने न तो लक्षण ग्रंथ लिखे और न ही इनके नियमों के अनुसार काव्य रचना की।
घनानंद, आलम, ठाकुर, बोला, द्विजदेव आदि।
रीतिकाल की विशेषताएँ -
1. इस काल की भाषा बृजभाषा थी।
2. काव्य रूप- मुख्यतः मुक्तक काव्य का प्रयोग।
3. दोहा छंद की प्रधानता।
4. दोहा के अलावा सवैया और कवित्त रीति कवियों के प्रिय छंद थे।
5. रीतिकालीन काव्य अधिकांशतः दरबारों में लिखा गया।
रीतिकाल की प्रवृत्तियाँ -
रीतिकाल की मुख्य दो प्रवृत्तियाँ थी -
रीति निरूपण
श्रंगारिकता
रीति निरूपण -
रीति निरूपण को काव्यांग विवेचन के आधार पर दो वर्गों में बांटा गया है -
सर्वांग विवेचन - सर्वांग विवेचन में काव्य के सभी अंगों जैसे रस छंद अलंकार आदि को विवेचन का विषय बनाया जाता है।
चिन्तामणि का कविकुलकल्पतरू, देव का शब्द रसायन, कुलपति का रस रहस्य, भिखारीदास का काव्य निर्णय इसी तरह के ग्रंथ हैं।
विशिष्टांग विवेचन - विशिष्टांग विवेचन में काव्य के किसी एक विशिष्ट अंग को विवेचन का विषय बनाया जाता है।
रीतिकाल के कवियों ने रसों में से श्रंगार रस में विशेष रुचि दिखाई है।
चिन्तामणि का रसविलास, सुखदेव मिश्र का रसार्णव, रसलीन का रस प्रबोध, मतिराम का रसराज, भिखारीदास का श्रंगार निर्णय, दलपति राय का अलंकार रत्नाकर, माखन का छंद विलास आदि इसी श्रेणी के ग्रंथ हैं।
रीतिकालीन प्रमुख कवि -
केशवदास - रसिकप्रिया, रामचंद्रिका, कविप्रिया, रतनबावनी, वीरसिंह देव चरित, विज्ञानगीता, जहाँगीर जसचन्द्रिका
चिंतामणि - कविकुल कल्पतरू, रस विलास, काव्य विवेक, श्रंगार मंजरी, छंद विचार
मतिराम - रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत्तकौमुदी
राजा जसवंतसिंह - भाषा भूषण
भिखारीदास - काव्य निर्णय, श्रंगार निर्णय
याकूब खाँ - रस भूषण
रसिक सुमति - अलंकार चन्द्रोदय
दूलह - कविकुल कण्ठाभरण
देव - शब्द रसायन, काव्य रसायन, भाव विलास, भवानी विलास, सुजान विनोद, सुख सागर तरंग
कुलपति मिश्र - रस रसायन
सुखदेव मिश्र - रसार्णव
रसलीन - रस प्रबोध
दलपति राय - अलंकार रत्नाकर
माखन - छंद विलास
बिहारी - बिहारी सतसई
रसनिधि - रतनहजारा
घनानंद - सुजान हित प्रबंध, वियोग बेलि, इश्कलता, प्रीति पावस, पदावली
आलम - आलम केलि
ठाकुर - ठाकुर ठसक
बोधा - विरह विरीश, इश्कनामा
द्विजदेव - श्रंगार बत्तीसी, श्रंगार चालीसी, श्रंगार लतिका
लालकवि - छत्र प्रकाश
भूषण - शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रशाल दशक
वृन्द - वृन्द सतसई
गिरधर कविराय - स्फुट छंद
मुख्य तथ्य -
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने केशवदास को कठिन काव्य का प्रेत कहा है।
घनानंद की प्रेमिका का नाम सुजान था।
रीतिकाल में श्रंगार रस की प्रधानता है।
बिहारी को गागर में सागर भरने वाला कवि कहा जाता है।
बिहारी राजा जयसिंह के दरवारी कवि थे।
ग्वाल रीतिकाल के अंतिम कवि हैं।
रीतिकाल में सेनापति ने प्रकृति पर स्वतंत्र रूप से रचना की है।
पद्माकर लक्षण ग्रंथकारों की परम्परा के अंतिम कवि हैं।
भूषण की कविता का प्रधान स्वर प्रशस्तिपरक है।
भूषण वीर रस के कवि हैं।
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