आधुनिक काल : गद्य साहित्य , उद्भव और विकास
आधुनिक काल (1850 ई से अब तक) -
भारतीय इतिहास का आधुनिक काल 19वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है।
आधुनिक काल का प्रारंभ भारतेन्दु युग से होता है।
आधुनिक काल की समय सीमा -
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक काल की समय सीमा 1843 ई से 1923 ई तक मानी है।
आधुनिक काल का नामकरण -
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक काल को 'गद्यकाल' कहा है क्योंकि आधुनिक काल में ही गद्य साहित्य और गद्य की विभिन्न विधाओं का विकास हुआ।
मिश्रबंधु - वर्तमान काल
डाॅ रामकुमार वर्मा - आधुनिक काल
गणपति चन्द्र गुप्त - आधुनिक काल
हिंदी गद्य का उद्भव और विकास -
हिंदी गद्य का विकास आधुनिक काल में हुआ पर इस काल से पहले भी गद्य रचनाएँ लिखीं गईं थीं।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार बल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने 'श्रंगार रस मंडल' की रचना बृजभाषा में की।
चौरासी वैष्णव की वार्ता (17वीं सदी )और दो सौ वावन वैष्णव की वार्ता इन दोनों रचनाओं के रचनाकार गोकुलनाथ है।
नाभादास ने 'अष्टयाम' की रचना बृजभाषा में की ।
गद्य लेखन का प्रचार- प्रसार न होने के कारण बृजभाषा में जो गद्य लिखा गया उसका विकास नहीं हो सका।
खड़ी बोली में गद्य रचना -
'चन्द छन्द बरनन की महिमा' गंग कवि द्वारा लिखी गई है और इसकी रचना अकबर के समय में हुई।
1741 ई में रामप्रसाद निरंजनी ने 'भाषायोग वशिष्ठ' नामक ग्रंथ की रचना खड़ी बोली में की। इससे स्पष्ट है कि मुंशी सदासुखलाल और लल्लूलाल से पहले भी खड़ी बोली में गद्य रचना हुई है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल रामप्रसाद निरंजनी को प्रथम प्रौढ़ गद्य लेखक मानते हैं।
लल्लूलाल ने उर्दू, खड़ी बोली, हिन्दी और बृजभाषा में गद्य की पुस्तकें लिखीं।
सदल मिश्र बिहार के निवासी थे और ये फोर्ट विलियम काॅलेज में काम करते थे। इन्होंने 'नासिकेतोपाख्यान' की रचना की जो खड़ी बोली में लिखा गया गद्य है।
मुंशी सदासुखलाल दिल्ली के रहने वाले थे। इन्होंने विष्णुपुराण से प्रसंग लेकर एक पुस्तक लिखी जो पूरी नहीं है । इन्होंने सुख सागर में श्रीमद्भागवत का हिंदी अनुवाद किया है।
संक्षिप्त में कहा जाता सकता है कि भारतेन्दु बाबू हरीश्चन्द्र से पहले भी गद्य रचना हुई है।
इंशा अल्ला खाँ ने रानी केतकी की कहानी की रचना 1855 ई से 1860 ई के बीच लिखी।
हिंदी गद्य के चार प्रारंभिक लेखकों का रचनाकाल 1800 ई के आस-पास है इसलिए हिंदी गद्य का सूत्रपात 1800 ई के आस-पास ही समझना चाहिए।
1857 की राज्यक्रांति एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण -
19वीं शताब्दी के पूर्व नव-जागरण का संदेश विभिन्न धार्मिक संप्रदायों द्वारा दिया गया था। सामाजिक समस्याओं और कुरीतियों का विरोध धार्मिक संतों और सूफियों द्वारा किया गया।
19वीं शताब्दी के बाद धार्मिक तत्व पूरी तरह से नष्ट तो नहीं हुए पर इनका स्वरूप परिवर्तित हो गया था। कहीं यूरोपीय संस्कृति का प्रभाव पड़ता दिख रहा था तो कहीं विशुद्ध भारतीय धर्म की ओर अग्रसर होने के लिए आन्दोलन छिड़ रहे थे।
इस नवजागरण के समय में अनेक सामाजिक तत्व सहायक हुए, वे तत्व हैं -
शिक्षा
व्यापारिक नीति
सम्प्रदायवादी नीति
पाश्चात्य संस्कृति
मिशनरियों के कार्य
प्रेस विकास
सामाजिक कुप्रथाएँ
1857 की क्रांति की शुरुआत मंगल पाण्डे ने की । अंग्रेजी शासन को बता दिया कि अब भारतीय जनता दासता स्वीकार नहीं कर सकती।
चारों ओर राष्ट्रीय चेतना की लहर दौड़ गई।
राष्ट्रीय देश-प्रेम की कविताएँ लिखी गईं, नाटक लिखे गए उनका मंचन किया गया, अंग्रेजी सरकार की पोलें खोलीं गईं ,और जागरूकता फैलाई गई।
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