समास किसे कहते हैं और समास कितने प्रकार के होते हैं ?
समास किसे कहते हैं?
समास किसे कहते हैं ?
समास में दो शब्दों का मेल होता है ।
दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने से जो नया सार्थक शब्द बनता है उसे समास कहते हैं।
समास के नियमों से बना शब्द सामासिक शब्द कहलाता है।
समास विग्रह-
सामासिक शब्द के सभी पदों को अलग - अलग करने की प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं।
समास में दो पद होते हैं । पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं।
जैसे-' राजपुत्र ' में राज पूर्वपद और पुत्र उत्तरपद है।
समास प्रक्रिया में पदों के बीच की विभक्तियां लुप्त हो जातीं हैं , जैसे - राजा का पुत्र - राजपुत्र में का विभक्ति का लोप हो गया है।
समास के प्रकार-
समास छह प्रकार के होते हैं-
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
- द्वंद्व समास
- बहुव्रीहि समास
पदों की प्रधानता-
- अव्ययीभाव समास- प्रथम पद प्रधान
- तत्पुरुष समास - द्वितीय पद प्रधान
- कर्मधारय समास - द्वितीय पद प्रधान (दोनों पद में विशेषण-विशेष्य का संबंध)
- द्विगु समास - प्रथम पद संख्यावाचक , द्वितीय पद प्रधान
- द्वंद्व समास - दोनों पद प्रधान, दोनों पदों के बीच " - "
- बहुव्रीहि समास - तीसरा अर्थ प्रधान होता है।
अव्ययीभाव समास-
पहला पद अव्यय और प्रधान होता है।
पहचान- पहला पद अनु, आ , प्रति , भर , यथा , हर आदि।
अनु + रूप - अनुरूप
आ + जन्म - आजन्म
प्रति + दिन - प्रतिदिन
भर + पेट - भरपेट
यथा + संभव - यथासंभव
हर + दिन - हरदिन
तत्पुरुष समास-
जिस समास में दूसरा पद प्रधान होता है और दोनों पदों के बीच का कारक चिन्ह लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
यशप्राप्त= यश को प्राप्त
भयाकुल = भय से आकुल
गौशाला = गौ के लिए शाला
जलहीन = जल से हीन
धर्मग्रंथ = धर्म का ग्रंथ
लोकप्रिय= लोक में प्रिय
तत्पुरुष समास को हम विस्तार से आगे पढ़ेंगे।
कर्मधारय समास-
जिस समास में दूसरा पद प्रधान होता है और पहले पद व दूसरे पद में विशेषण- विशेष्य का संबंध होता है।
मतलब दोनों पदों में से एक पद विशेषण तो दूसरा पद विशेष्य होता है।
जैसे -
चरणकमल - कमल के समान चरण
यहाँ पर चरण को कमल के समान बताया है। इसलिए यहाँ चरण विशेष्य है और कमल विशेषण है।
ऐसे ही कुछ और उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं।
कमलनयन - कमल के समान नयन
लालमणि - लाल है जो मणि
नीलकंठ- नीला है जो कंठ
महापुरुष- महान है जो पुरुष
मृगनयन- मृग के समान नयन
महादेव- महान है जो देव
द्विगु समास-
जिस समास का पहला पद संख्यावाचक होता है वहाँ पर द्विगु समास होता है। इसमें समूह या समाहार का बोध होता है।
दोपहर- दो पहरों का समूह
त्रिलोक- तीन लोकों का समाहार
चौराहा- चार राहों का समूह
पंचवटी- पाँच वृक्षों का समूह
सप्ताह- सात दिनों का समूह
नवरात्रि- नौ रात्रियों का समूह
द्वंद्व समास-
जिस समास में दोनों पद प्रधान हों वहाँ पर द्वंद्व समास होता है और विग्रह करने पर और , अथवा , या , एवं, लगता है।
दोनों पदों के बीच योजक चिन्ह (-) का प्रयोग होता है।
राजा रानी = राजा और रानी
दिन - रात = दिन और रात
नर - नारी = नर एवं नारी
गुण - दोष = गुण अथवा दोष
आगे - पीछे = आगे या पीछे
पाप - पुण्य = पाप और पुण्य
बहुब्रीहि समास-
जिस समास में दोनों में से कोई पद प्रधान नहीं होता है और दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, वहाँ बहुब्रीहि समास होता है। अर्थात तीसरा पद प्रधान होता है ।
जैसे - नीलकंठ, नीला है कंठ जिनका अर्थात भगवान शिव।
यहाँ पर दोनों पद मिलकर तीसरे पद ' शिव' की ओर संकेत कर रहे हैं। इसलिए यहाँ बहुब्रीहि समास है।
लंबोदर - लंबा है उदर जिनका , गणेश
पीतांबर - पीत है अंबर जिनका, कृष्ण
विषधर - विष को धारण करने वाला, सर्प
गिरिधर - गिरि को धारण करने वाले हैं जो, कृष्ण
महावीर - महान वीर हैं जो , हनुमान जी
पंकज - पंक में पैदा हो जो, कमल
तत्पुरुष समास के भेद -
विभक्तियों के आधार पर तत्पुरुष समास छह प्रकार के होते हैं-
प्रथम - कर्ता - ने
द्वितीय - कर्म - को
तृतीय - करण - से , के द्वारा
चतुर्थी - संप्रदान - के लिए
पंचमी - अपादान - से अलग होने का भाव
षष्ठी - संबंध - का, की, के
सप्तमी - अधिकरण - में , पर
कर्म तत्पुरुष-
इसमें कर्म कारक की विभक्ति 'को' का लोप हो जाता है।
रथचालक - रथ को चलाने वाला
चिड़ीमार - चिड़िया को मारने वाला
यशप्राप्त - यश को प्राप्त
गगनचुंबी - गगन को चूमने वाला
करण तत्पुरुष-
इसमें करण कारक की विभक्ति 'से' , 'के द्वारा' का लोप हो जाता है।
मनचाहा - मन से चाहा
भयाकुल - भय से आकुल
करुणापूर्ण - करुणा से पूर्ण
सूररचित - सूर के द्वारा रचित
संप्रदान तत्पुरुष-
इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति ' के लिए ' का लोप हो जाता है।
प्रयोगशाला - प्रयोग के लिए शाला
गौशाला - गौ के लिए शाला
देशभक्ति - देश के लिए भक्ति
परीक्षाभवन - परीक्षा के लिए भवन
अपादान तत्पुरुष-
इसमें अपादान कारक की विभक्ति ' से ' का लोप हो जाता है।
यहाँ से का अर्थ है अलग होना , जैसे - पत्ता पेड़ से गिरा । इसमें पत्ता पेड़ से अलग हो गया है। तो यहाँ पर 'से' अपादान कारक की विभक्ति है।
धनहीन - धन्यवाद से हीन
गुणहीन - गुण से हीन
ऋणमुक्त - ऋण से मुक्त
पथभ्रष्ट - पथ से भ्रष्ट
संबंध तत्पुरुष -
इसमें संबंधकारक की विभक्ति का की के का लोप हो जाता है।
जैसे-
राजपुत्र - राजा का पुत्र
विद्यासागर - विद्या का सागर
देशरक्षा - देश की रक्षा
राजाज्ञा - राजा की आज्ञा
पराधीन - पर के अधीन
अधिकरण तत्पुरुष-
इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति ' में ' ,' पर ' का लोप हो जाता है।
जैसे-
लोकप्रिय - लोक में प्रिय
आनंदमग्न - आनंद में मग्न
धर्मवीर - धर्म में वीर
आपबीति - आप पर बीति
तत्पुरुष समास का एक और प्रमुख भेद है नञ् समास।
नञ् समास-
जिस समास में प्रथम पद में नकारात्मक शब्द लगे हों जैसे अ, अन्, न, ना, गैर आदि।
अधर्म = न धर्म
अनिष्ट = न इष्ट
अनावश्यक = न आवश्यक
नापसंद = न पसंद
गैरवाजिब = न वाजिब।
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Apka blog kaafi Saral evam sehaj hai.
जवाब देंहटाएंWell done mami jii👌👌
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