सगुण भक्ति काव्य धारा, कृष्ण भक्ति शाखा और राम भक्ति शाखा

 सगुण भक्ति काव्य धारा -

इस पोस्ट में हम भक्ति काल की सगुण भक्ति काव्य धारा का अध्ययन करेंगे और साथ ही कृष्ण भक्ति शाखा और राम भक्ति शाखा का भी अध्ययन करेंगे।

सगुण भक्ति काव्य धारा की भी दो शाखाएँ हैं-

कृष्णाश्रयी शाखा/कृष्णभक्ति शाखा

रामाश्रयी शाखा/रामभक्ति शाखा

कृष्णभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि सूरदास जी हैं।

रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि तुलसीदास जी हैं।

सगुण भक्ति काव्य धारा में सगुण व साकार ब्रह्म की उपासना की जाती है।

सूरदास जी ने माना है कि निर्गुण ब्रह्म की साधना का आधार ज्ञान व योग है जो कि बहुत कठिन है।

जबकि सगुण ब्रह्म की उपासना भक्ति व प्रेम से संबंधित है जो बहुत सरल है।

ज्ञान  व योग से जिस ब्रह्म को जाना भी नहीं जा सकता प्रेम व भक्ति से उसे प्राप्त भी किया जा सकता है।

सूरदास की गोपियों ने ज्ञान व योग को खारिज करते हुए प्रेम की वकालत की है-

निरगुन कौन देस को बासी, को है जनक जननी को कहियत।

को नारी, को दासी।।

सगुण भक्ति काव्य धारा की विशेषताएँ -

1.अवतारवाद में विश्वास।

2.ईश्वर की लीलाओं का गायन।

3.भक्ति का विशिष्ट रूप - रागानुगा भक्ति- कृष्ण भक्त कवियों द्वारा की गई भक्ति।

वैधी भक्ति - राम भक्त कवियों द्वारा की गई भक्ति।

4.लोक भाषा का प्रयोग।

कृष्ण भक्ति शाखा -

जिन भक्त कवियों ने विष्णु भगवान के अवतार के रूप में कृष्ण की उपासना को अपना लक्ष्य बनाया वे 'कृष्णाश्रयी शाखा' के कवि कहलाए।

मध्य युग में कृष्ण भक्ति का प्रचार ब्रजमंडल में बहुत ही उत्साह के साथ हुआ।

इस ब्रजमंडल में कई कृष्ण भक्ति संप्रदाय सक्रिय थे ।

प्रमुख कृष्ण भक्ति संप्रदाय-

बल्लभ संप्रदाय -बल्लभ संप्रदाय का दार्शनिक सिद्धांत 'शुद्धाद्वैत' है।

इस संप्रदाय का साधना मार्ग 'पुष्टि मार्ग' है।

पुष्टि मार्ग का आधार ग्रंथ 'श्रीमद्भागवत' है।

पुष्टि मार्ग में बल्लभाचार्य ने 4 कवियों को दीक्षित किया -

  1. सूरदास 
  2. कुंभनदास
  3. परमानंद दास
  4. कृष्णदास

बल्लभाचार्य के मरणोपरांत उनके पुत्र विट्ठलनाथ आचार्य की गद्दी पर बैठे।

विट्ठलनाथ  ने भी 4 कवियों को दीक्षित किया -

  1. छीतस्वामी
  2. गोविन्दस्वामी
  3. चतुर्भुजदास
  4. नंददास

विट्ठलनाथ ने इन 8 दीक्षित कवियों को मिलाकर 'अष्टछाप ' की स्थापना की।

अष्टछाप की स्थापना 1565 ई में की।

सूरदास इनमें सर्वप्रमुख हैं इसलिए उन्हें 'अष्टछाप का जहाज' कहा जाता है।

निम्बार्क संप्रदाय - इस संप्रदाय के प्रवर्तक निम्बार्काचार्य थे।

इनके सिद्धांत को द्वैताद्वैतवाद कहा जाता है।

इस संप्रदाय से जुड़े कवि हैं - श्री भट्ट , हरि व्यास देव

राधा बल्लभ संप्रदाय - इस संप्रदाय के प्रवर्तक स्वामी हित हरिवंश थे।

इस संप्रदाय से जुड़े कवि हैं - हित हरिवंश, दामोदर दास, ध्रुव दास, नेही नगरीदास ।

हरिदासी/ सखी संप्रदाय - हरिदासी संप्रदाय की स्थापना स्वामी हरिदास ने की थी।

इसका एक अन्य नाम सखी संप्रदाय भी है।
स्वामी हरिदास अपने समय के महान संगीतज्ञ थे।
हरिदास के शिष्य तानसेन थे वे भी महान संगीतज्ञ थे।
तानसेन को दीपक राग में महारत हासिल थी।
( दीपक राग वह राग है जिसका गायन करने पर दीपक अपने आप चले जाते हैं।)

चैतन्य/गौड़ीय संप्रदाय - इस संप्रदाय को गौड़ीय संप्रदाय भी कहा जाता है।

इस संप्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभू थे।

इस संप्रदाय के प्रमुख कवि - गदाधर भट्ट , माधवदास, भगवानदास।

कुछ कृष्ण भक्त कवि संप्रदाय के पक्ष में नहीं थे संप्रदाय से अलग थे जैसे - मीराबाई और रसखान आदि।

कृष्ण भक्ति शाखा में सबसे अधिक कवि शामिल हुए और सबसे अधिक काव्य रचना हुई।

कृष्ण भक्ति काव्य की विशेषताएँ -

1. कृष्ण का ब्रह्म रूप में चित्रण।

2. साल लीला और वात्सल्य भाव का वर्णन।

3. श्रंगार रस प्रधान काव्य।

4. लोक संस्कृति पर बल।

5. मुक्तक काव्य की प्रधानता।

6. काव्य की भाषा ब्रजभाषा।

7. गेय पद की प्रधानता। गेय पद मतलब ऐसे पद जिनको गाया जा सके।

8. कवियों का किसी राजा के आश्रय में रहने का विरोध।

9. नारी मुक्ति पर बल।

माता-पिता अपनी संतान को जो प्रेम करते हैं उसे वात्सल्य कहते हैं।

सूरदास जी वात्सल्य रस का चित्रण करने के लिए पूरे विश्व में सर्वप्रमुख हैं।

या ये भी कहा सकते हैं कि नव रसों के अलावा वात्सल्य को रस के रूप में मान्यता इन्हीं के कारण मिली है।

प्रमुख कृष्ण भक्त कवि और उनकी रचनाएँ-

सूरदास - सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, भ्रमरगीत (सूरसागर से संकलित अंश)

कुंभनदास - फुटकल पद

परमानंददास - परमानंद सागर

कृष्णदास - जुगलमान चरित्र

छीतस्वामी - फुटकल पद

गोविन्दस्वामी - फुटकल पद

चतुर्भुजदास - द्वादशयश, भक्ति प्रताप, हितजू को मंगल

नंददास - रास पंचाध्यायी, भंवरगीत (प्रबंध काव्य)

श्री भट्ट - युगल शतक

हित हरिवंश - हित चौरासी

स्वामी हरिदास - हरिदास जी के पद

ध्रुवदास - भक्त नामावली, रसलावनी

मीराबाई - नरसी जी का मायरा, गीत गोविन्द टीका, राग गोविन्द, राग सोरठा के पद

रसखान - प्रेम वाटिका, सुजान रसखान, दानलीला

नरोत्तमदास - सुदामा चरित

राम भक्ति शाखा -

जिन भक्त कवियों ने विष्णु भगवान के अवतार के रूप में राम जी की उपासना को अपना लक्ष्य बनाया वह राम भक्ति शाखा के कवि कहलाए।

राम भक्ति शाखा के सबसे बड़े और प्रतिनिधि कवि तुलसीदास जी हैं।

राम भक्त कवियों की संख्या कृष्ण भक्त कवियों की अपेक्षा कम है।

प्रमुख राम भक्त कवि -

रामानंद - राम आरती

अग्रदास - रामाष्टयाम, राम भजन मंजरी

ईश्वर दास - भरत मिलाप, अंगद पैज 

तुलसीदास - रामचरितमानस (प्रबंध काव्य), गीतावली, कवितावली, विनयपत्रिका, दोहावली, कृष्ण गीतावली, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, बरबै रामायण(प्रबंध काव्य), रामाज्ञा प्रश्नावली, वैराग्य संदीपनी, राम लला नछहू

नाभादास - भक्तमाल

केशवदास - रामचन्द्रिका (प्रबंध काव्य)

नरहरिदास - पौरुषेय रामायण


राम भक्ति काव्य की विशेषताएँ -

1. राम का लोक नायक के रूप में चित्रण।

2. समन्वयवाद

3. मर्यादावाद

4. मानवतावाद

5. प्रबंध व मुक्तक दोनों काव्य रचना।

6. काव्य भाषा मुख्यतः अवधि।

7. सामूहिकता पर बल



        

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