छायावाद युग, छायावाद क्या है
छायावाद युग -
आज की इस पोस्ट में हम छायावाद का अध्ययन करेंगे। छायावाद की समय सीमा, छायावाद की परिभाषा, छायावाद का अर्थ, छायावाद की पृष्ठभूमि, छायावाद की विशेषताएं, छायावाद के कवि और उनकी रचनाएं आदि का अध्ययन करेंगे।
छायावाद का विकास द्विवेदी युगीन कविता के पश्चात हुआ।
छायावाद की समय सीमा -
सर्वमान्य मत - सन् 1918 से 1936
डॉ नगेन्द्र के अनुसार - सन् 1918-1938
आचार्य शुक्ल जी के अनुसार - सन् 1918-1936
छायावाद की पृष्ठभूमि-
छायावादी कवि व्यक्ति की स्वाधीनता के साथ-साथ प्रत्येक प्रकार की दासता के विरुद्ध आवाज उठाते हैं। छायावाद में राष्ट्रीयता का स्वर मुखरित होता है।
हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम रहा लंबे समय तक दासता के बाद लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा। महात्मा गांधी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई सत्य अहिंसा और प्रेम के रूप में लड़ी गई। इन सिद्धांतों पर चलकर गांधी ने जनता में त्याग व बलिदान की भावना उत्पन्न की। छायावादी कविता में भी इन जीवन मूल्यों को समाहित किया गया।
प्रसाद जी की कविताएं देशभक्ति व राष्ट्रीयता की भावना के साथ-साथ त्याग, सेवा, क्षमा, करुणा की प्रेरणा देती हैं। छायावादी कवियों ने भारतीय जनता में आत्मविश्वास पैदा किया।
प्रसाद जी के गीत 'हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती' में भारत महिमा का गुणगान किया गया है
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने 'दिल्ली' नामक कविता में भारत के अतीत का गौरव गान किया है।
छायावादी कवियों ने वर्तमान को अतीत से जोड़कर जो जीवन मूल्य निर्मित किए हैं वे समकालीन जीवन के आदर्श बन सकते हैं।
छायावाद की परिभाषा -
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार "छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में समझना चाहिए एक तो रहस्यवाद के अर्थ में जहां उसका संबंध काव्य वस्तु से होता है अर्थात जहां कवि उस अनंत और अज्ञात प्रियतम को आलंबन बनाकर अत्यंत चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है...... छायावाद का दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ में है।"
डॉ नगेंद्र के अनुसार "छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है। यह एक विशेष प्रकार की भाव पद्धति है,जीवन के प्रति विशेष भावात्मक दृष्टिकोण है।"
रामकुमार वर्मा के अनुसार "परमात्मा की छाया आत्मा में, आत्मा की छाया परमात्मा में पड़ने लगती है तब छायावाद की सृष्टि होती है।"
जयशंकर प्रसाद के अनुसार "कविता के क्षेत्र में पौराणिक युग की किसी घटना अथवा देश - विशेष की सुंदरता के बाह्य वर्णन से भिन्न, जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने लगी, तब हिंदी में उसे छायावाद के नाम से अभिहित किया गया। ध्वन्यात्मकता, लाक्षणिकता, सौंदर्यमय प्रतीक विधान तथा उपचार के साथ स्वानुभूति की विवृत्ति छायावाद की विशेषताएं हैं।"
नंददुलारे वाजपेई के अनुसार "मानव तथा प्रकृति के सूक्ष्म किंतु व्यक्त सौंदर्य में आध्यात्मिक छाया का भाव छायावाद की सर्वमान्य व्याख्या हो सकती है।"
महादेवी वर्मा के अनुसार "छायावाद तत्वत: प्रकृति के बीच जीवन का उद्गीत है।"
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार "छायावाद के मूल में पाश्चात्य रहस्यवादी भावना अवश्य थी। इस रहस्यवाद की मूल प्रेरणा अंग्रेजी की रोमांटिक भावधारा की कविता से प्राप्त हुई थी।"
उपरोक्त विद्वानों की परिभाषा से स्पष्ट है कि
- छायावाद में स्थूलता के स्थान पर सूक्ष्मता दिखाई देती है।
- छायावादी काव्य में रहस्यवादी प्रवृत्ति विद्यमान है।
- छायावाद प्रेम, प्रकृति व सौंदर्य का काव्य है।
- छायावाद में स्वानुभूति की प्रधानता है।
- छायावादी कविता अंग्रेजी रोमांटिक काव्य धारा से प्रभावित है।
- छायावाद में सांस्कृतिक चेतना, मानवतावादी दृष्टिकोण की प्रमुखता है।
छायावाद का अर्थ -
मुकुटधर पांडे - रहस्यवाद
महावीर प्रसाद द्विवेदी - अन्योक्ति पद्धति
रामचंद्र शुक्ल - शैली वैचित्र्य
आचार्य नंददुलारे वाजपेई - आध्यात्मिक छाया का भान
डॉ नगेंद्र ने छायावाद को स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह बताया है।
"सामान्य तौर पर किसी कविता के भावों की छाया यदि कहीं और जाकर पड़े तो वह छायावादी कविता है।"
छायावादी कविता की विशेषताएं-
- सामाजिक रूढ़ियों से मुक्ति
- प्रकृति प्रेम
- नारी प्रेम एवं उसकी मुक्ति का स्वर
- रहस्यवाद
- सांस्कृतिक व सामाजिक चेतना/मानवतावाद
- स्वच्छंद कल्पना
- विविध काव्य रूपों का प्रयोग
- मुक्त छंद का प्रयोग
- प्रकृति संबंधी बिंबो की बहुलता
छायावाद के चार आधार स्तंभ है -
- जयशंकर प्रसाद
- सुमित्रानंदन पंत
- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
- महादेवी वर्मा
इनके नाम ऐसे भी याद कर सकते हैं-प्रसाद, पंत,निराला, महादेवी वर्मा।
छायावादी काल में निम्नलिखित धाराएं विकसित हुई -
- छायावादी काव्यधारा
- राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा
- प्रणय काव्यधारा या प्रेम और मस्ती की काव्य धारा
छायावादी कवि और उनकी रचनाएं-
1.छायावादी काव्यधारा -
जयशंकर प्रसाद - उर्वशी, शोकोच्छवास, कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, महाराणा का महत्व, अयोध्या का उद्धार, वन मिलन, प्रेम राज्य
झरना, आंसू, लहर, कामायनी केवल ये चार कविताएं ही प्रसाद जी की छायावादी कविताएं हैं।
जयशंकर प्रसाद की प्रथम प्रति है - उर्वशी
जयशंकर प्रसाद की प्रथम छायावादी काव्य कृति है - झरना
प्रसाद की अंतिम काव्य कृति है - कामायनी
कामायनी जयशंकर प्रसाद की सबसे प्रसिद्ध काव्य कृति है।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, सरोज स्मृति (कविता) राम की शक्ति पूजा (कविता)
सुमित्रानंदन पंत - उच्छवास, ग्रंथि, वीणा, पल्लव, गुंजन ये पंत जी की छायावादी कविता हैं।
युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूली, रजतशिखर, उत्तरा, वाणी, पतझर, स्वर्ण काव्य, लोकायतन, चिदंबरा, कला और बूढ़ा चांद
पंत की प्रथम छायावादी काव्य कृति है - उच्छ्वास
पंत की अंतिम छायावादी काव्य कृति है - गुंजन
महादेवी वर्मा - निहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत ( सभी का संकलन यामा नाम से)
रामकुमार वर्मा - रूपराशि, निशीथ, चित्ररेखा, आकाशगंगा
उदय शंकर भट्ट - राका, मानसी, विसर्जन, युगदीप, अमृत और विष
'वियोगी' - निर्माल्य, एकतारा, कल्पना
लक्ष्मी नारायण मिश्र - अंतर जगत
जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज'- अनुभूति, अंतरध्वनि
2.राष्ट्रवादी सांस्कृतिक काव्य धारा -
माखनलाल चतुर्वेदी - कैदी और कोकिला, हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिनी, पुष्प की अभिलाषा (कविता) युग चारण, समर्पण, माता
सियारामशरण गुप्त - मौर्य विजय, अनाथ, दूर्वादल, विषाद, आर्द्रा पाथेय, मृण्मयी, बापू, दैनिकी
सुभद्रा कुमारी चौहान - त्रिधारा, मुकुल, खूब लड़ी मरदानी वह तो झांसी वाली रानी थी (कविता), वीरों का कैसा हो वसंत(कविता)
रामधारी सिंह दिनकर - रेणुका, कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रश्मिरथी, प्राण भांग, प्रतीक्षा परशुराम की, नील कुसुम, हारे को हरिनाम, मृत्ति तिलक
सोहनलाल द्विवेदी - भैरवी, चित्रा, प्रभाती, पूजा गीत, युगधारा, वासवदत्ता
श्याम नारायण पांडे - हल्दीघाटी, जौहर
बालकृष्ण शर्मा नवीन - कुमकुम, उर्मिला, अपलक, रश्मि रेखा, क्वासी, विनोबा स्वप्न।
प्रणय काव्यधारा या प्रेम और मस्ती की काव्य धारा -
इस काव्य धारा के कवि हैं
हरिवंश राय बच्चन
नरेंद्र शर्मा
रामेश्वर शुक्ल अंचल आदि।
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