गद्य क्या है ? गद्य की प्रमुख विधाएं गद्य काव्य क्या है?

 


गद्य क्या है ?

'गद्य वह वाक्यबद्ध रचना है, जिसमें हमारी चेष्टाएं, हमारे मनोभाव, हमारी कल्पनाएं और हमारी चिंतनशील मन: स्थितियां सुगमतापूर्वक व्यक्त की जा सकती है।'
यही कारण है कि आज गद्य साहित्य सशक्त अभिव्यक्ति के द्वारा विविध विधाओं के माध्यम से अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है। 

हिंदी साहित्य में गद्य के विकास काल का विभाजन कीजिए-

गद्य के आधुनिक स्वरूप के विकसित होने के पीछे उसके विकास की एक लंबी एवं सतत प्रक्रिया है।
हिंदी गद्य का आदि रूप हमें नाथ साहित्य में प्राप्त होता है। नाथों ने हठयोग तथा ब्रह्म ज्ञान की व्याख्या ब्रजभाषा के गद्य रूप में की है। ब्रज भाषा में गद्य की परंपरा विट्ठलनाथ, गोकुलनाथ, नाभादास से होती हुई आधुनिक काल तक आई है। 
इस दृष्टि से भारतेंदु युग से पूर्व, हिंदी गद्य के विकास को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है - प्रारंभिक काल और विकास काल।
1.प्रारंभिक काल - ब्रजभाषा का प्रारंभिक रूप जैन ग्रंथों में मिलता है। हठ योग तथा ब्रह्मज्ञान से संबंध रखने वाली गोरखपंथी पुस्तकों में भी इसका रूप दिखाई पड़ता है। कृष्ण भक्ति से प्रभावित कुछ ग्रंथ इस युग में लिखे गए, जिनमें 'चौरासी वैष्णव की वार्ता' और 'दो सौ वावन वैष्णव की वार्ता' आदि उल्लेखनीय हैं।
2.विकास काल - खड़ी बोली के प्रयोग के साथ ही गद्य का विकास देखने को मिलता है। आधुनिक काल में खड़ी बोली में जो रचनाएं हुई उनका सूत्रपात 19 वीं सदी के प्रारंभ से होता है। खड़ी बोली की प्रारंभिक कृतियों के रूप में मुंशी सदासुखलाल की 'सुखसागर' इंशाल्लाह की 'रानी केतकी की कहानी' लल्लू लाल की 'प्रेम सागर' और सदल मिश्र की 'नासिकेतोपाख्यान' आदि महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय है।

साहित्य क्षेत्र में भारतेंदु हरिश्चंद्र का आगमन एक महत्वपूर्ण घटना है। इसकी सबसे बड़ी देन है - हिंदी को परिनिष्ठित रूप प्रदान करना। इस युग में सांस्कृतिक जागरण की एक लहर दौड़ चुकी थी। शिक्षित समाज पर युगीन परिस्थितियां प्रभाव डाल रहीं थीं। 
इस समय भारतेंदु का एक मंडल तैयार हुआ। प्रताप नारायण मिश्र, बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन, श्रीनिवास दास, अंबिकादत्त व्यास, राधाचरण गोस्वामी, मोहनलाल आदि इस मंडल में शामिल थे।
भारतेंदु के बाद हिंदी गद्य को सुव्यवस्थित और व्याकरण सम्मत बनाने में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का विशेष योगदान है। उन्होंने 'सरस्वती' पत्रिका के माध्यम से भारतेंदु के कार्य को द्रुतगति से आगे बढ़ाया। उनके समय तक हिंदी गद्य पूर्ण रूप से प्रतिष्ठित हो गया था और विभिन्न विधाओं में प्रौढ़ रचना भी प्रारंभ हो गई थी।

गद्य की प्रमुख विधाएं लिखिए -

गद्य की विधाओं को दो भागों में बांटा गया है
1.गद्य की प्रमुख विधाएं

उपन्यास 
कहानी 
नाटक 
एकांकी 
आलोचना 
निबंध 

1.हिंदी गद्य की गौण या प्रकीर्ण विधाएं -

आत्मकथा 
जीवनी 
संस्मरण 
रेखाचित्र 
यात्रा वृतांत 
रिपोर्ताज 
पत्र साहित्य 
डायरी 
भेंट वार्ता 
गद्यकाव्य

गद्य काव्य किसे कहते हैं?

गद्य काव्य, गद्य और पद्य के बीच की विधा है। इसमें गद्य के माध्यम से किसी भावपूर्ण विषय की काव्यात्मक अभिव्यक्ति होती है।इसका गद्य सामान्य गद्य से अधिक सरस, भावात्मक, एवं अलंकृत होता है। यह संवेदना की अभिव्यक्ति इस प्रकार करता है कि पाठक उसे पढ़कर रसमय हो जाता है। 
गद्य काव्य में गद्य एवं पद्य दोनों के ही प्रमुख गुण समाहित होते हैं। इसकी आत्मा काव्य के निकट है एवं शरीर गद्य के निकट होता है। इसमें कविता जैसी संवेदनशीलता एवं रसात्मक ता होती है। इसके वाक्य सरल और प्रभावपूर्ण होते हैं और गद्य काव्य के अनुच्छेद छोटे होते हैं।

गद्य काव्य की विशेषताएं -

  • इसमें विचारों की अपेक्षा भावों की प्रधानता होती है। 
  • यह निबंध की अपेक्षा संक्षिप्त तथा वैयक्तिक होता है। 
  • इसमें केवल एक ही केंद्रीय भाव की प्रधानता होती है। 
  • इसकी शैली चमत्कारपूर्ण एवं कवित्वपूर्ण होती है। 
  • इसमें विचारों का समावेश भावों के रूप में ही होता है। 
  • गद्य काव्य में प्रेम, करुणा, आदि की भावनाएं छोटे-छोटे कल्पना चित्रों के माध्यम से व्यक्त की जाती हैं। 

हिंदी गद्य काव्य का आरंभ राधा कृष्ण दास के 'साधना संग्रह' के प्रकाशन से होता है।

हिंदी की सर्वाधिक प्रसिद्ध विधा कौन सी है?


हिंदी गद्य की विधाओं में कहानी सबसे सशक्त विधा बनकर सामने आई है। पिछले 100 वर्षों में कहानी की आशातीत प्रगति उत्साहवर्धक है। अन्य विधाओं की अपेक्षा कहानी में युगबोध की क्षमता अधिक है।






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