प्रयोगवाद_प्रयोगवाद की विशेषताएं_प्रयोगवादी कवि
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प्रयोगवाद
प्रयोगवाद (1943 ई से ,.....) -
छायावाद व प्रगतिवाद के विरोध में प्रयोगवाद आया।
छायावाद में कोरी भावुकता थी जबकि प्रगतिवाद में शुष्क सामाजिकता, इसके विपरीत प्रयोगवादी कविता अनुभूति और अभिव्यक्ति के सामंजस्य से तैयार होती है।
प्रयोगवाद नाम सबसे पहले आचार्य नंददुलारे वाजपेई द्वारा दिया गया।
अज्ञेय जी को प्रयोगवाद का प्रवर्तक कहा जाता है।
प्रयोगवाद की शुरुआत तार सप्तक के प्रकाशन से मानी जाती है।
प्रयोगवादी कविता के समानांतर ही बिहार में 1956 ईस्वी में एक धारा स्थापित हुई जिसे प्रपद्यवाद या नकेनवाद कहा गया।
नकेनवाद का नामकरण इस धारा में शामिल होने वाले तीन रचनाकारों के नामों के प्रथम अक्षर से किया गया है ।
नलिन विलोचन शर्मा, केसरी कुमार तथा नरेश ने नकेनवाद की स्थापना की
नलिन विलोचन शर्मा, केसरी कुमार, नरेश
तीनों कवियों के पहले अक्षर न के न।
प्रयोगवादी कविता की पृष्ठभूमि - प्रयोगवादी कविता की पृष्ठभूमि फ्रायड के काम दर्शन से हुई। फ्रायड ने काम को जीवन का अनिवार्य अंग माना। उन्होंने स्वीकार किया कि व्यक्ति की पहचान उसके मानसिक हलचल से होती है। मन के तीन हिस्से माने गए हैं चेतन, अवचेतन और अचेतन मन । जागरण दशा में सारी इच्छाएं चेतन मन में ही चलती हैं। इनमें कुछ नैतिक तथा कुछ अनैतिक होती हैं। अनैतिक इच्छाओं को सामाजिक मर्यादा के डर से व्यक्ति उद्घाटित नहीं कर पाता है और इनका दमन करना पड़ता है। ये दमित इच्छाएं अवचेतन मन में बैठ जाती है, जो इच्छाएं बार-बार दबाई जाएं वो अचेतन मन में धंस जाती हैं।
दमित इच्छा ही कुंठा का रूप ले लेती है। फ्रायड ने कुंठा का प्रकाशन दो रूपों में स्वीकारा - संरचनात्मक तथा विध्वंसात्मक। प्रयोगवादी कविता पर अवचेतन मन की दमित इच्छाओं और काम भावनाओं के चित्रण का प्रभाव फ्रायड से ही आया। प्रयोगवादी साहित्य भी अपने बदले परिवेश का चित्रण बदली हुई भाषा और नए रूप में करता है। 40-50 के दशक में व्यक्तिवाद का विकास, व्यक्ति और समाज का द्वंद, स्वतंत्रता की छटपटाहट तथा नवीनता के आग्रह आदि ने प्रयोगवादी कविता की पृष्ठभूमि को तैयार किया।
प्रयोगवाद की विशेषताएं -
- अनुभूति व यथार्थ का संश्लेषण/बौद्धिकता का आग्रह।
- वाद या विचारधारा का विरोध
- निरंतर प्रयोगशीलता
- नई राहों का अन्वेषण
- साहस और जोखिम
- व्यक्तिवाद
- काम संवेदना की अभिव्यक्ति
- शिल्पगत प्रयोग
- भाषा शैलीगत का प्रयोग
प्रयोगवादी कवि हैं -
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, (1911-87 ई)
गिरिजाकुमार माथुर,
गजानन माधव मुक्तिबोध,
नेमीचंद जैन,
भारत भूषण अग्रवाल,
रघुवीर सहाय, (1929 ई)
धर्मवीर भारती,
नलिन विलोचन शर्मा,
केसरी कुमार,
नरेश
- नोट - अज्ञेय जी का पूरा नाम है सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय'।
प्रयोगवादी कवि और उनकी कविताएं -
अज्ञेय - हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इंद्रधनुष रौंदे हुए, अरी ओ करुणा प्रभामय, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूं, नदी की बोक पर छाया, असाध्य वीणा, चिंता, इत्यलम
गिरिजा कुमार माथुर - भीतरी नदी की यात्रा, कल्पान्तर, शिलापंख चमकीले, छाया मत छूना मन, धूप के धान, साक्षी रहे वर्तमान, मंजीर, नाश व निर्माण
मुक्तिबोध - चांद का मुंह टेढ़ा है, भूरी भूरी खाक धूल,
भारत भूषण अग्रवाल - कागज के फूल, जागते रहो, मुक्ति मार्ग, अप्रस्तुत मन, उतना वह सूरज है
रघुवीर सहाय - सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, लोग भूल गए हैं, मेरा प्रतिनिधि, हंसो हंसो जल्दी हंसो
धर्मवीर भारती - अंधायुग, कनुप्रिया, ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष
नेमीचंद जैन -
नलिन विलोचन शर्मा -
केसरी कुमार,
नरेश
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