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उपन्यास किसे कहते हैं ? उपन्यास कितने प्रकार के होते हैं? परिभाषा। तत्व। प्रकार what is Upanyas

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उपन्यास का अर्थ, उपन्यास की परिभाषा, हिंदी उपन्यास का विकास         इस पोस्ट में हम पढ़ेंगे - उपन्यास का अर्थ                         उपन्यास की परिभाषा                    हिंदी उपन्यास का विकास              प्रेमचंद पूर्व हिंदी उपन्यास  प्रेमचंद युगीन हिंदी उपन्यास           प्रेमचंदोत्तर हिंदी उपन्यास उपन्यास के प्रमुख तत्वों का वर्णन    उपन्यास के प्रकार  उपन्यास किसे कहते  है ? ( उपन्या स का अर्थ क्या है ? ) उपन्यास शब्द का अर्थ है - सामने रखना। उपन्यास शब्द 'उप' और 'न्यास' दो पदों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है - समीप रखना या सामने रखना। वह गद्य रचना जिसको पढ़ने के बाद ऐसा लगे कि यह हमारी ही है, इसमें हमारे ही जीवन के बारे में लिखा गया है, 'उपन्यास' है। उपन्यास गद्य का नव - विकसित रूप है। जिसमें कथावस्तु , चरित्र-चित्रण संवाद आदि के तत्वों के माध्यम स...

गद्य क्या है ? गद्य की प्रमुख विधाएं गद्य काव्य क्या है?

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  गद्य क्या है ? 'गद्य वह वाक्यबद्ध रचना है, जिसमें हमारी चेष्टाएं, हमारे मनोभाव, हमारी कल्पनाएं और हमारी चिंतनशील मन: स्थितियां सुगमतापूर्वक व्यक्त की जा सकती है।' यही कारण है कि आज गद्य साहित्य सशक्त अभिव्यक्ति के द्वारा विविध विधाओं के माध्यम से अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है।  हिंदी साहित्य में गद्य के विकास काल का विभाजन कीजिए- गद्य के आधुनिक स्वरूप के विकसित होने के पीछे उसके विकास की एक लंबी एवं सतत प्रक्रिया है। हिंदी गद्य का आदि रूप हमें नाथ साहित्य में प्राप्त होता है। नाथों ने हठयोग तथा ब्रह्म ज्ञान की व्याख्या ब्रजभाषा के गद्य रूप में की है। ब्रज भाषा में गद्य की परंपरा विट्ठलनाथ , गोकुलनाथ , नाभादास से होती हुई आधुनिक काल तक आई है।  इस दृष्टि से भारतेंदु युग से पूर्व, हिंदी गद्य के विकास को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है - प्रारंभिक काल और विकास काल। 1.प्रारंभिक काल - ब्रजभाषा का प्रारंभिक रूप जैन ग्रंथों में मिलता है। हठ योग तथा ब्रह्मज्ञान से संबंध रखने वाली गोरखपंथी पुस्तकों में भी इसका रूप दिखाई पड़ता है। कृष्ण भक्ति से प्रभावित कुछ ...

तार सप्तक क्या है? तार सप्तक के कवि कौन-कौन हैं

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तार सप्तक  तार सप्तक क्या है   तार   सप्तक सात कवियों का एक मंडल है । अज्ञेय द्वारा 1943 ई० में सात कवियों का एक मण्डल बनाया गया जिसे  तार सप्तक  कहा गया। इसका संकलन एवं संपादन भी अज्ञेय जी ने किया।    तार सप्तक में 7 कवि शामिल होते हैं जो एक साथ मिलकर अपनी कविताओं का संकलन और उनका प्रकाशन करते हैं। तार सप्तक प्रभाकर माचवे के दिमाग की उपज है। सबसे पहले प्रभाकर माचवे के दिमाग में यह बात आई कि तार सप्तक का संकलन होना चाहिए। प्रभाकर माचवे सोचते ही रह गए और अज्ञेय जी ने तार सप्तक का संकलन एवं संपादन कर दिया। इसलिए तार सप्तक के संपादन का श्रेय अज्ञेय को जाता है। तार सप्तक की परिभाषा- अज्ञेय जी के अनुसार - 'एक ही प्रकार की भाव चेतना के तार में पिरोए हुए कवियों की रचनाओं का संकलन तार सप्तक कहलाता है।' 'यह सातों कवि किसी एक स्कूल के नहीं है। वे राही नहीं है अपितु राहों के अन्वेषी हैं।'  अन्वेषी का मतलब होता है खोज करना या ढूंढना। ये कवि किसी एक राह पर नहीं चले बल्कि उन्होंने नई नई राहों की खोज की। सप्तक के कवि प्राचीन काव्य धारा पर ना चलकर उन्होंने अपनी...

नयी कविता का प्रारंभ कब हुआ? नयी कविता की विशेषताएं क्या हैं ?

 नयी कविता की समय सीमा ( 1951 ई से....)- नई कविता का प्रारंभ 1951 ईस्वी में प्रकाशित दूसरे तार सप्तक से माना जाता है। सप्तक के कवियों ने अपने वक्तव्य में अपनी कविता को नई कविता की संज्ञा दी है। जिस तरह प्रयोगवादी काव्य आंदोलन को शुरू करने का श्रेय अज्ञेय जी की पत्रिका 'प्रतीक' को जाता है उसी तरह नई कविता आंदोलन को शुरू करने का श्रेय जगदीश प्रसाद गुप्त के संपादन में निकलने वाली पत्रिका 'नई कविता' को जाता है। भारतीय स्वतंत्रता के बाद लिखी गई कविताओं को नई कविता कहा जाता है। इन कविताओं में परंपरागत कविता से आगे नए भाव बोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नए मूल्यों और नए सिल्प विधान का अन्वेषण किया गया। अज्ञेय जी को नई कविता का भारतेंदु कह सकते हैं। क्योंकि जिस प्रकार भारतेंदु जी ने जो लिखा सो लिखा साथ ही उन्होंने समकालीन कवियों को भी इस दिशा में प्रेरित किया, उसी प्रकार अज्ञेय जी ने स्वयं साहित्य सृजन किया तथा औरों को भी प्रेरित और प्रोत्साहित किया। दूसरा सप्तक और तीसरा सप्तक के कवियों को नई कविता के कवियों में शामिल किया जाता है। नई कविता आंदोलन में एक साथ भिन्न-भिन्न वाद य...

प्रयोगवाद_प्रयोगवाद की विशेषताएं_प्रयोगवादी कवि

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प्रयोगवाद  प्रयोगवाद (1943 ई से ,.....) - छायावाद व प्रगतिवाद के विरोध में प्रयोगवाद आया। छायावाद में कोरी भावुकता थी जबकि प्रगतिवाद में शुष्क सामाजिकता, इसके विपरीत प्रयोगवादी कविता अनुभूति और अभिव्यक्ति के सामंजस्य से तैयार होती है। प्रयोगवाद नाम सबसे पहले आचार्य नंददुलारे वाजपेई द्वारा दिया गया। अज्ञेय जी को प्रयोगवाद का प्रवर्तक कहा जाता है। प्रयोगवाद की शुरुआत तार सप्तक के प्रकाशन से मानी जाती है।  प्रयोगवादी कविता के समानांतर ही बिहार में 1956 ईस्वी में एक धारा स्थापित हुई जिसे प्रपद्यवाद या नकेनवाद कहा गया।  नकेनवाद का नामकरण इस धारा में शामिल होने वाले तीन रचनाकारों के नामों के प्रथम अक्षर से किया गया है । नलिन विलोचन शर्मा, केसरी कुमार तथा नरेश ने नकेनवाद की स्थापना की  न लिन विलोचन शर्मा, के सरी कुमार, न रेश तीनों कवियों के पहले अक्षर न के न। प्रयोगवादी कविता की पृष्ठभूमि -   प्रयोगवादी कविता की पृष्ठभूमि  फ्रायड के काम दर्शन से हुई। फ्रायड ने काम को जीवन का अनिवार्य अंग माना। उन्होंने स्वीकार किया कि व्यक्ति की पहचान उसके मानसिक हलचल से...

प्रगतिवाद क्या है प्रगतिवाद की विशेषताएं क्या हैं

  प्रगतिवाद( 1936 ई से.......)-  सन् 1936 ईस्वी में लखनऊ में एक अधिवेशन का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता प्रेमचंद जी ने की थी। इस अधिवेशन में प्रेमचंद्र जी ने कहा था कि साहित्य का उद्देश्य दबे, कुचले हुए वर्ग की मुक्ति का होना चाहिए। भारत में इस 'भारतीय प्रगतिशील संघ' की स्थापना सज्जाद जहीर और मुल्क राज आनंद ने की थी प्रगतिशील संघ द्वारा ही हिंदी में प्रगतिवाद का आरंभ हुआ। एक साहित्यिक आंदोलन के रूप में प्रगतिवाद का इतिहास मोटे तौर पर 1936 ईस्वी से लेकर 1956 ईस्वी तक का इतिहास है। प्रगतिवाद ना तो सिर्फ मतवाद है और ना ही स्थिर काव्य रूप बल्कि यह तो निरंतर विकास शील साहित्य धारा है। प्रगतिवादी काव्य का मूल आधार मार्क्सवादी दर्शन है। प्रगतिवादी आंदोलन की पहचान जीवन और जगत के प्रति नया दृष्टिकोण है।  प्रगतिवादी काव्य की श्रष्टि वर्ग चेतना प्रधान है।  यह नया दृष्टिकोण था -  पुराने रूढ़िवाद जीवन मूल्यों का त्याग। आध्यात्मिक और रहस्यात्मक अवधारणाओं की जगह पर लोक आधारित अवधारणाओं को मानना। हर तरफ के शोषण और दमन का विरोध।  धर्म लिंग भाषा क्षेत्र पर आधारित गैर बराबर...

छायावाद युग, छायावाद क्या है

  छायावाद युग - आज की इस पोस्ट में हम छायावाद का अध्ययन करेंगे। छायावाद की समय सीमा, छायावाद की परिभाषा, छायावाद का अर्थ,  छायावाद की पृष्ठभूमि, छायावाद की विशेषताएं, छायावाद के कवि और उनकी रचनाएं आदि का अध्ययन करेंगे। छायावाद का विकास द्विवेदी युगीन कविता के पश्चात हुआ। छायावाद की समय सीमा -  सर्वमान्य मत - सन् 1918 से 1936  डॉ नगेन्द्र के अनुसार - सन् 1918-1938 आचार्य शुक्ल जी के अनुसार - सन् 1918-1936 छायावाद की पृष्ठभूमि- छायावादी कवि व्यक्ति की स्वाधीनता के साथ-साथ प्रत्येक प्रकार की दासता के विरुद्ध आवाज उठाते हैं। छायावाद में राष्ट्रीयता का स्वर मुखरित होता है। हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम रहा लंबे समय तक दासता के बाद लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा। महात्मा गांधी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई सत्य अहिंसा और प्रेम के रूप में लड़ी गई। इन सिद्धांतों पर चलकर गांधी ने जनता में त्याग व बलिदान की भावना उत्पन्न की। छायावादी कविता में भी इन जीवन मूल्यों को समाहित किया गया। प्रसाद जी की कविताएं देशभक्ति व राष्ट्रीयता की भावना के साथ-साथ त्याग, सेवा, क्षमा, करुणा की प्रेरणा ...